Sunday, 9 July 2023

चल सको तो चलो...

सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।
माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।
हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।
राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।
महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।
जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।
खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।

                                                                                  नरेंद्र वर्मा

 

चल सको तो चलो....

Monday, 17 April 2023

मेरी दुनिया.......

 मेरी दुनिया


मेरे दुनिया में होने का मतलब...
मेरे दिन रात की चहक और महक...
मेरे जीवन की सॉंस और आत्मा...
मेरे होंठों की हँसी...

मेरी ऑंखो की चमक...
घर की रोशन खनक
गूंजती महकती धनक

मेरे जीवन का सौभाग्य
मेरी तपस्या का भाग

घर को घर बनाती हैं
मुझे उसमें माँ, बहन, सखी
सारे रूप नज़र आते हैं ॥

वो अकेले ही हज़ारों हैं
वरना हज़ारों में भी मैं अकेली हूँ
मैं क्या हूँ कैसी हूँ
बिना आईना मैं उसमें दिखती हूँ

वो मेरी दुनिया …मेरा गुमान
मेरे नाम को सारथक करने वाली...
मेरी बेटी… मेरी तस्वीर …. मेरी छाया



एक माँ की बात …….॥

Tuesday, 11 April 2023

ख्वाहिश नहीं.....


 ख्वाहिश नहीं, मुझे  मशहूर होने की,

आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है।

अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे,

जिसकी जितनी जरूरत थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे

जिन्दगी का फलसफा भी
कितना अजीब है,

शामें कटती नहीं और
साल गुजरते चले जा रहे हैं

एक अजीब सी
दौड़ है ये जिन्दगी,

जीत जाओ तो कई
अपने पीछे छूट जाते हैं और

हार जाओ तो,
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं!

बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अक्सर,

मुझे अपनी
औकात अच्छी लगती है।

मैंने समंदर से
सीखा है जीने का तरीका,

चुपचाप से बहना और
अपनी मौज में रहना।

ऐसा नहीं कि मुझमें
कोई ऐब नहीं है,

पर सच कहता हूँ
मुझमें कोई फरेब नहीं है।

जल जाते हैं मेरे अंदाज से,
मेरे दुश्मन,

एक मुद्दत से मैंने
न तो मोहब्बत बदली
और न ही दोस्त बदले हैं।

एक घड़ी खरीदकर,
हाथ में क्या बाँध ली,

वक्त पीछे ही
पड़ गया मेरे

सोचा था घर बनाकर
बैठूँगा सुकून से,

पर घर की जरूरतों ने
मुसाफिर बना डाला मुझे

सुकून की बात मत कर-
बचपन वाला, इतवार अब नहीं आता!

जीवन की भागदौड़ में
क्यूँ वक्त के साथ, रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती जिन्दगी भी
आम हो जाती है

एक सबेरा था
जब हँसकर उठते थे हम,

और आज कई बार, बिना मुस्कुराए
ही शाम हो जाती है

कितने दूर निकल गए
रिश्तों को निभाते-निभाते,

खुद को खो दिया हमने
अपनों को पाते-पाते।

लोग कहते हैं
हम मुस्कुराते बहुत हैं,

और हम थक गए,
दर्द छुपाते-छुपाते

खुश हूँ और सबको
खुश रखता हूँ,

लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए
मगर सबकी परवाह करता हूँ।

मालूम है
कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी

कुछ "अनमोल" लोगों से
रिश्ते रखता हूँ।

                                                                    मुंशी प्रेमचंद जी

Wednesday, 29 December 2021

कौन पढ़ता हैं ??

यहाँ ख़ामोश नज़रों की गवाही कौन पढ़ता है.

मेरी आँखों में तेरी बेग़ुनाही कौन पढ़ता है.


नुमाइश में लगी चीज़ों को मैला कर रहे हैं सब.

लिखी तख्तों पे "छूने की मनाहीकौन पढ़ता है.


जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो.

वहाँ बेचैन रातों की सियाही कौन पढ़ता है.


ये वो महफिल हैजिसमें शोर करने की रवायत है.

दबे लब पर हमारी वाह-वाही कौन पढ़ता है.


वो बाहर देखते हैंऔर हमें मुफ़लिस समझते हैं.

खुदी जज़्बों पे अपनी बादशाही कौन पढ़ता है.


जो ख़ुशक़िस्मत हैंबादल-बिजलियों पर शेर कहते हैं.

लुटे आंगन में मौसम की तबाहीकौन पढ़ता है.....


Friday, 17 December 2021

ख़्वाब भारी या ज़िंदगी

नमस्कार दोस्तों 


आज बड़े दिनों के बाद मन की बातों को शब्दों में पिरो रही हूँ …. लिख तो काफ़ी सालो से रही हूँ पर बाँटने की ताक़त आज देख रही हूँ

आप जानते हैं 

ज़िंदगी में सबसे क़ीमती ख़्वाब होते हैं 

और जब ख़्वाब ख़्वाहिशें बन जाए तो ज़िंदगी ख़ाली हो जाती हैं 


ख़्वाब यानी सपने ज़िंदगी का मक़सद ज़रूर होते हैं पर ज़िंदगी से ऊपर नहीं होते…. पर फिर भी क्यू सपनो का टूटना एहसास दिलाता हैंकी ज़िंदगी मैं कुछ बचा ही नहीं हैं 

अगले ही पल ये सोचना भी ख़ास हैं की हमें ऊपर वाले ने विशेष बनाया हैं जो अपने जीवन के मक़सद को पूरा करने ही इस लोक में भेजेगए हैं  हम सपनो के पीछे क्यूँ भाग रहे थे ,,,,, हमारा भागना …..रुकना तो ऊपरवाला निश्चित करता हैं  हम तो उसके निर्देशन मेंकिरदार निभाते हैं बस ……


कर्म कर फल की इच्छा मत रख “

बस इसी मूल मंत्र पर चलते जाना हैं ॥ ज़िंदगी का मक़सद ज़रूर पूरा होगा।



सकारात्मक रहिए और सकारात्मक ऊर्जा को फैलाइए 


शुभ रात्रि 

Monday, 5 December 2011

khwab bunte gaye

Har khawab ko hum bunte gaye,
Bunte-bunte falak main pauch gaye,
Toote jo khawab mere,
Tho iss kadar zami main aa gire,
Ki fir uthne ka hoosh kho gaye.

Aakhirkaar jab hosh aaya hume,
Tho khawab ko bhula, sapne dekhne lage,
Bin par k aasmaan main udne lage,
Itna dur hogaye,
Ki jab sapne toote,
Tho dharti par na pauch sake.

Firte rahe hum abbr main,
Dhundte rahe hum sath apno k,
Koi nahi hai sath mera,
Kisse kaheta tamanna apne dil ka,
Subha hote he ye chand,taare chhod chale jaate,
Tho raat main suraj kirne dena bhul jaate.

Har sapne mere toot gaye,
Khawab ko bhula diye,
Aisa gire ki fir utth na sake,
Ho gaye the apahizz, fir chal na sake,
Jab sapne mere toote, har khawab bhul gaye…………..!


                                                               ajeeb dasta.....